जिंदगी में कुछ चीजे ऐसे ही होती हैं जो बहूत कुछ सिखा जाती हैं ..ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ.
सुबह सुबह मैं बस स्टैंड चला गया सोचा आज सफ़र बस से कर लूँ ..तभी अचानक बिलकुल नयी चमकती हरी बस मानो लग रह था जैसे सड़क पर नरम हरी घास की सेज बिछी हुई हो …जीवन का प्रतिविम्ब सा लगा ..बाहर से ही अन्दर की भीड़ दिख रही थी. मैं भी उसी का हिस्सा हूँ तो फिर डरना क्या ..कूद पड़ा ..अन्दर का परिवेश दिल को दहलाने वाला था. जो मुझे नरम जीवन सा लग रह था वो रेगिस्तान सा प्रतीत हो रहा था …और उस भीड़ में एक बूढी महिला जो हो सकता है उन ७० लोगो में किसी की माँ या किसी की दादी की उम्र की होगी, खड़ी थी चुप चाप ..पर वो भीड़ निरह चुप चाप जिसे मैं थोड़ी देर पहले जिवंत का उदहारण दे रहा था ठुट बने बैठे थे ….क्या जमाना आ गया है ..सभी मृत से हो गए और जिन्दा इन्सान अपने लाशो की बोझ को ढो रहा है …सचमुच और शायद उस बूढी को भी यकीं था की कोई हटने वाला नहीं है वो चुप चाप खड़ी रही एक कोने में दबी हुई ..शायद वो भी येही सोच रही होगी की उनके बच्चे कितने कमजोर हैं जो माँ का भार नहीं झेल सकते ..येही सोचता हूँ मैं ..कि क्या किताबों में लिखी बाते कल्पना है या काश हम कभी उसे उतार पाते ..
मुझे अलग न समझे मैं भी कहीं न कहीं उसी मृत भीड़ का हिस्सा हूँ ..चुप हूँ शायद अपने अंत के इन्तेजार में खैर मुझे अब उतरना है ..पर आज मैं वो सिख पाया कि आप कभी किसी बुजुर्ग को देखे तो मदद के हाँथ बाद सके ..