परसों की बात है
मेरे गोद में चहक रही थी
बार बार मेरे गालों को चूम रही थी
जता रही थी वो अपना प्यार
कभी मेरे चश्मे को नन्ही उंगलियों से पकडती
कभी चाभी के गुच्छे को मुह में दबाती
कभी गुब्बारे के इन्तेजार में घंटो धुप में खड़ी रहती
अचानक सब ख़तम होगया
मैं रो पड़ा
मानो सब लुट गया हो मेरा
अचानक कोई बोल पड़ा
क्या लड़की ही थी न
सायद लड़की होना ही अभिशाप बन गया
उसके जीवन के लिए….
लड़की ही तो थी ?
- Published: 8 years ago on May 18, 2013
- By: Sid
- Last Modified: May 19, 2013 @ 10:29 am
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